BA Semester-1 History - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-1 इतिहास - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 इतिहास

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :325
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2628
आईएसबीएन :000000000

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बीए सेमेस्टर-1 इतिहास के नवीन पाठ्यक्रमानुसार प्रश्नोत्तर

प्रश्न- पृथ्वीराज चौहान की उपलब्धियों की समीक्षा कीजिए। मोहम्मद गोरी के हाथों उसकी पराजय के क्या कारण थे? उल्लेख कीजिए।

अथवा
चाहमान नरेश पृथ्वीराज तृतीय के शासन काल की घटनाओं का उल्लेख कीजिए।
अथवा
पृथ्वीराज चौहान एवं संयोगिता के कथानक की समीक्षा कीजिए।

उत्तर-

चाहमान नरेश पृथ्वीराज तृतीय (1177-1192 ई.)

पृथ्वीराज के पिता का नाम सोमेश्वर तथा माता का नाम कर्पूरदेवी था। उसका जन्म अन्हिलवाड़ में सम्भवतः सन् 1166 ई में हुआ था। उसकी अल्पायु में ही सोमेश्वर का देहान्त हो गया। अतः राजा बनने के पश्चात् भी उसे कुछ समय तक अपनी माता कर्पूरीदेवी की संरक्षता में ही शासन करना पड़ा। पृथ्वीराज विजय में उस सम्बन्ध में जो उल्लेख है, उससे यह स्पष्ट है कि अपने पुत्र की अल्प-व्यवस्था में उस राजमाता ने शासन सत्ता का भली-भाँति संचालन किया। किन्तु इसका आधा श्रेय पृथ्वीराज के मुख्यमन्त्री महामण्डलेश्वर कदम्वास (कैमास अथवा कैम्बवास) को भी प्राप्त होना चाहिए। इसके ही परामर्शो से कर्पूरीदेवी सफल हुई। कदम्वास के अतिरिक्त कर्पूरीदेवी के पिता अचलराज का भाई भुवनैकमल्ल भी उस समय एक परामर्शदाता और सहायक था। सम्बन्धित साक्ष्यों में इन दोनों के पृथ्वीराज के प्रारम्भिक युद्धों में उसे सफलता दिलाने का अधिकांश श्रेय दिया गया है। कहा जाता है कि उन्होंने पृथ्वीराज की उसी प्रकार सेवा की जिस प्रकार हनुमान और गरुड़ ने राम की, की थी।

चरित्र-चित्रण - पृथ्वीराज चौहान अपने वंश का प्रसिद्ध एवं शक्तिशाली शासक था। इसकी राज्यसभा में प्रसिद्ध कवि चन्दबरदायी निवास करते थे जिन्होंने 'पृथ्वीराजरासो' नामक महाकाव्य की रचना की थी। 'पृथ्वी राजरासो' से पृथ्वीराज चौहान के चरित्र पर प्रकाश पडता है। इसने विविध विधाओं तथा

'पृथ्वी-राजरासो' कलाओं में शीघ्र ही निपुणता प्राप्त कर ली थी। वह अपने समय का एक सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर था। रासो काव्य के अनुसार पृथ्वीराज चौहान छोटे-छोटे युद्ध तो अकेले ही लड़ लेता था तथा इनमें विजय हासिल करता था। वह एक कुशल कूटनीतिज्ञ शासक था। इसने अपनी कूटनीति से कई राज्यों को अपने अधीन कर लिया  था। वह कला का प्रेमी था, इसने अपने यहाँ अनेक कलाकारों को उच्च पदों पर नियुक्त किया था। वह एक वीर योद्धा था जिसने 16 बार मुहम्मद गोरी को हराया था। वह उदार हृदय का था। इसने गोरी को युद्ध में बन्दी बना लिया था लेकिन अपनी उदारता के कारण इसे बाद में मुक्त कर दिया था। वह अपने यहाँ आये शरणागत की जान पर खेलकर रक्षा करता था।।

इस प्रकार पृथ्वीराज चौहान कुशल साम्राज्यवादी प्रशासक, वीरा योद्धा तथा सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर होने के साथ-साथ विद्वानों का संरक्षक तथा उदार हृदय वाला था। यद्यपि वह एक वीर तथा योग्य सेनापति था, परन्तु इसमें राजनीतिक दूरदर्शिता का अभाव था। यही कारण था कि वह अत्यन्त शक्तिशाली होते हुए भी गोरी से पराजित हो गया।

राजनैतिक उपलब्धियाँ

'पृथ्वीराजरासो' से ज्ञात होता है कि जब पृथ्वीराज अवयस्क था तभी इसके पिता की मृत्यु हो गयी जिससे शासन का कार्यभार कुछ समय तक संरक्षिका के रूप में इसकी माता ने सम्भाला। 1180 ईस्वी के लगभग पृथ्वीराज वयस्कता को प्राप्त हुआ तथा शासन का भार इसने स्वतन्त्र रूप से ग्रहण किया। राजा होने के पश्चात् वह अपनी शक्ति एवं साम्राज्य के विस्तार में जुट गया।

नागार्जुन के विद्रोह का कठोर दमन - सन् 1180 ई. के लगभग वयस्क होने पर पृथ्वीराज ने शासन सत्ता पूर्ण रूप से अपने हाथ में ले ली। जयानक के अनुसार उसके उत्तराधिकार को नागार्जुन नामक किसी महत्वाकांक्षी व्यक्ति ने चनौती दी। ऐसा विचार स्पष्ट किया गया है कि यह नागार्जुन विग्रहराज चतुर्थ वीसलदेव का पुत्र और अमर गांगेत्र का छोटा भाई था। यह पृथ्वीराज की अल्प व्यवस्था का लाभ उठाकर राज्य सिंहासन प्राप्त करना चाहता था। बाद के कुछ साक्ष्यों में तो यहाँ तक कहा गया है कि वह अजमेर का शासक था। किन्तु इस सम्बन्ध मे पृथ्वीराज के राजदरबारी कवि और ऐतिहासिक दृष्टि से विश्वसनीय जयानक का कथन है कि नागार्जुन ने गडपुर नामक नगर पर अधिकार कर लिया। किन्तु वहाँ वह पृथ्वीराज के घेरेबन्दी का शिकार बना। कुछ समय तक घिरे रहने के उपरान्त वह तो अपनी जान बचाकर निकलकर भाग गया, किन्तु उसके सभी सगे सम्बन्धियों को बन्दी बना लिया गया।

चन्देल राज्य पर आक्रमण - जिनपाल द्वारा रचित खरतरगच्छ पट्टावली के अनुसार सन् 1182 ई. में पृथ्वीराज अपनी दिग्विजय में व्यस्त था। सच्चे प्राचीन भारतीय राजनीतिक अर्थ में उसने कोई दिग्विजय की अथवा नहीं, इसको तो निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता, किन्तु अनेक समकालीन साक्ष्यों और परवर्ती ग्रन्थों से यह ज्ञात होता है कि आस-पास की सभी प्रमुख राजनीतिक सत्ताओं में वैसी प्रतिद्वन्द्विताएँ थीं जो प्रायः छोटे-बड़े युद्धो में अभिव्यक्त हुई। उन शत्रु सत्ताओं में चन्देल भी एक थे। चन्देलों से पृथ्वीराज का स्वतन्त्र रूप से शासनसूत्र सम्भालने के कुछ समय उपरान्त ही संघर्ष हुआ। इस सम्बन्ध में पृथ्वीराज रासो के आल्हाखण्ड के आधार पर यह कहा जा सकता है कि पृथ्वीराज चन्देल क्षेत्रों को चीरता हुआ केवल सिरसागढ़ और महोबा तक ही नहीं चढ़ गया वरन् उसने कालिंजर के प्रसिद्ध दुर्ग को घेरकर परमाल को भी बन्दी बना लिया। उसे बन्दी के रूप में पृथ्वीराज के सामने प्रस्तुत किया गया। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि आल्हा और ऊदल नामक दो बनाफर सरदारों के साथ गहड़वाल नरेश जयचन्द की एक सैनिक टुकड़ी ने भी महोबा के युद्ध में चन्देलों की सहायता की थी।

किन्तु जैजाकभुक्ति पर पृथ्वीराज के आक्रमण का कोई स्थाई परिणाम नहीं निकला। उसके मदनपुर के अभिलेखों से बेतवा नदी के पार महोबा के निकटवर्ती क्षेत्रों पर उसके अधिकार को जो तिथि सन् 1182-83 ई ज्ञात होती है वही तिथि परमाल रासो में उसके आक्रमण की भी दी हुई है। किन्तु उस तिथि के एक दो वर्षों के अन्दर ही कालिंजर और महोबा दोनों ही स्थानों पर परमार्दिन के अधिकार के अभिलेख प्राप्त होते है। अतः यह निश्चित है कि थोडे से चन्देल क्षेत्रों पर जो चाहमान सत्ता स्थापित हो गई थी, वह शीघ्र ही समाप्त हो गई थी।

भाडानक विजय - चाहमान राज्य की उत्तर दिशा में स्थित माडानक क्षेत्रों पर पृथ्वीराज का आक्रमण अधिक लाभकारी और परिणामकारी सिद्ध हुआ। डॉ. दशरथ शर्मा ने पद्मप्रभसूरि और जिनपति सूरी नामक दो जैन आचार्यों के पारस्परिक शास्त्रार्थ का उल्लेख करते हुए जिन पदसूरि के दो श्लोकों का उल्लेख किया है। इन श्लोकों की रचना पृथ्वीराज की भडानको पर विजय के उपलक्ष में सन् 1182 ई. में की गई थी। अतः पृथ्वीराज ने इस विजय को इस तिथि से पूर्व ही प्राप्त कर लिया होगा। भाडानक प्रदेश आधुनिक हरियाणा प्रान्त की रेवाड़, गुड़गाँव और भिवानी तहसीलो और राजस्थान के अलवर क्षेत्र के मध्य का प्रदेश था। इस समय भाडानको का शासक साहणपाल था और पृथ्वीराज ने इसी पर विजय प्राप्त की थी। इन साहणपाल का एक अभिलेख अघाटपुर नामक स्थान पर प्राप्त हुआ है।

चालुक्यों से संघर्ष - जैन साहित्य और राजकवि चन्दबरदाई की रचना पृथ्वीराज रासो में पृथ्वीराज और अणिहलवाड के शासक भीम द्वितीय के बीच छुटपुट संघर्ष, का उल्लेख कई स्थानों पर प्राप्त होता है, किन्तु सबका विश्लेषण करने के उपरान्त भी इस सम्बन्ध में तथ्यों को निश्चित तैथिकक्रम से बता सकना अत्यन्त कठिन है। पृथ्वीराज रासो दोनों पक्षों के होने वाले संघर्षों की तिथि, उनके ब्यौरे और उनके परिणाम के सम्बन्ध में आश्चर्यजनक ढंग का अनैतिहासिक विवरण प्रस्तुत करता है। इसके अनुसार चाहमान राजसभा मे अपने कुछ स्वजनों के मारे जाने से अप्रसन्न होकर भीम चालुक्य ने चाहमान राज्य पर आक्रमण करके युद्ध में सोमेश्वर की हत्या कर दी तथा नागौर के दुर्ग पर भी अधिकार कर लिया।

चाहमान गहडवाल सम्बन्ध - जनश्रुतियों में पृथ्वीराज की इन विजयों की अपेक्षा कन्नौज के गहडवाल नरेश जयचन्द्र से उसके सम्बन्धों तथा मुहम्मद गोरी के साथ उसके युद्धों ही की अधिक कथाए मिलती हैं। सर्वप्रथम जयचन्द्र के साथ उसके सम्बन्धों की व्याख्या की जा रही है। यह तो निश्चित है कि उन दोनों के पारस्परिक राजनीतिक व्यवहार एक-दूसरे के प्रतिस्पर्द्धा थे। किन्तु पृथ्वीराज रासो की संयोगिता स्वयंवर की कथा में कितनी ऐतिहासिकता है इस प्रश्न पर विद्वानों में मतभेद है। यह वृत्तान्त पृथ्वीराज विजय, हम्मीर महाकाव्य और प्रबन्ध चिन्तामणि जैसे ग्रन्थों में नहीं मिलता, किन्तु 'सुर्जनचरित' और 'आईने अकबरी' में उपलब्ध है। निःसन्देह पृथ्वीराज रासो के विभिन्न विवरणों के अन्तर स्थलों में ठोस ऐतिहासिक तथ्य छिपे हुए हैं और यह असम्भव नहीं है कि जयचन्द्र की संयोगिता नामक कोई पुत्री रही हो, जिसके हृदय में पृथ्वीराज की वीरताओं का समाचार मात्र सुनकर प्रेम भावनाएं उत्पन्न हो गई हो।

पृथ्वीराज रासो के उपरोक्त विवरण में कितनी सत्यता है अथवा कितनी काल्पनिकता है. यह बताना सरल कार्य नहीं है। इस युग में प्रायः स्वयंवरों के अधिक उदाहरण नहीं मिलते, परन्तु यह असम्भव नहीं है कि जयचन्द्र का ध्यान किसी धार्मिक सामाजिक कार्य में लगे रहने के बीच पृथ्वीराज ने तीव्रगति से उस पर आक्रमण किया हो और उसकी सेनाओं को बुरी तरह परास्त करके प्रेमातुर संयोगिता को ले भागा हो। इस काल मे चुपके से शत्रु राजधानियों तक चढ़ आने के अन्य उदाहरण मिलते हैं। जो भी हो जयचन्द्र उत्तरी भारत की सर्वप्रमुख सत्ता बनने के लिए उतना ही उत्सुक और प्रयत्नशील था जितना पृथ्वीराज। दोनों ही राज्यों की पारस्परिक सीमाए मिलती थीं और गहड़वाल राज्य पर चाहमान सत्ता के दबाव की समस्या जयचन्द्र के सामने सदैव ही बनी रही होगी। हसननिजामी का कथन है कि पृथ्वीराज के हृदय में विश्वविजय जैसी कोई भावना भूत के समान घर कर गई थी। इस स्थिति को शान्तिपूर्वक देखते रहना जयचन्द्र जैसे शक्तिशाली और महत्वाकाक्षी व्यक्ति के लिए असहनीय था और सयोगिता को जबरदस्ती भगा ले जाना उसके लिए जले पर नमक के समान सिद्ध हुआ होगा। परिणाम केवल उन्हीं दोनों के लिए घातक नही हुआ वरन यह सम्पूर्ण देश के लिये भी घातक सिद्ध हुआ।

मोहम्मद गोरी से युद्ध और चाहमान सत्ता का पतन - यथार्थ में चाहमानों का सम्पूर्ण इतिहास ही तुर्कों से संघर्ष का इतिहास है। चाहमान नरेश विग्रहराज चतुर्थ के अभिलेखों में "आर्यावर्त की तुर्क म्लेच्छों से रक्षा कर उसे वास्तव में आर्य भूमि बनाने का श्रेय दिया गया है और जयानक भट्ट गोमांस भक्षी म्लेच्छ के रूप मे कलियुग की प्रत्यक्ष मूर्ति मोहम्मद शिहाबुददीन गोरी के जीवन का अन्त करना पृथ्वीराज के जीवन का लक्ष्य बताता है। किन्तु तत्कालीन भारतीय समाज और संस्कृति की रक्षा का उत्तरदायित्व सम्भालने वाले उस चाहमान नरेश में जितनी वीरता, उत्साह और अपनी आन पर मर मिटने की जितनी सतत तत्परता थी, उतनी राजनीतिक बुद्धिमत्ता नहीं थी। यद्यपि उस समय के प्रमुख भारतीय नरेशों में वह इस दोष का अकेला दोषी नही था. सामन्तों पर स्थित होने के कारण सम्भवत उसको मुख्य रूप से उत्तरदायी माना जा सकता है। शिहाबुददीन गोरी ने सन 1173 ई. में गजनी पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया और उसके दो वर्षों के भीतर ही वह भारत की ओर भी लालायित नेत्रों से देखने लगा। सन् 1175 ई. में मुल्तान और कच्छ पर अधिकार करने के उपरान्त उसने सर्वप्रथम अपना मुख्य आक्रमण सन् 1178 ई. में गुजरात पर किया। मार्ग में उसने किरादू और नाडौल को भी लूटा. किन्तु चालुक्यों ने सम्भवत: चाहमानो से सहायता माँगी थी किन्तु अपने मन्त्री कदम्बवास के विरोधी होने के कारण पृथ्वीराज ने न तो नाडौल के चाहमानो की ही कोई सहायता की और न ही चालुक्यों की। इस उदाहरण से उस समय के मन्त्रियों में दूरदृष्टि के अभाव का ही परिचय मिलता है। परन्तु एक शासक होने के नाते पृथ्वीराज का इस सम्बन्ध में उत्तरदायित्व और भी अधिक था।

पृथ्वीराज तृतीय: एक महान योद्धा के रूप में 

दिल्ली और अजमेर का शासक चौहान वंशी पृथ्वीराज तृतीय उर्फ रायपिथौरा था। उत्तर भारत के राजपूत शासकों में वह सर्वाधिक साहसी और महत्वाकांक्षी था। उसके पिता पृथ्वीराज द्वितीय ने अपने राज्य को पर्याप्त शक्तिशाली बनाया था, रायपिथौरा' ने उसमें अधिक वृद्धि करने का प्रयास किया। परन्तु अपनी महत्वाकांक्षाओं के कारण उसे अपने पडोसी राजपूत राजाओं से संघर्ष करना पड़ा और प्रायः सभी से उसकी शत्रुता हो गयी थी, गुजरात के चालुक्य वंशी राजा को पराजित तथा अपमानित किया था। बुंदेलखण्ड के चन्देल शासक परमर्दीदेव (राजा परमाल देव) को परास्त करके उसने उससे महोबा छीन लिया था और कन्नौज के गहरवार शासक जयचन्द्र की पुत्री संयोगिता से बलपूर्वक विवाह करके घोर शत्रुता मोल ले ली थी. पृथ्वीराज तृतीय अपने युग का एक महान साहसी योद्धा सेनानायक था, परन्तु उसमें दूरदर्शिता नही थी और राजनीतिकता का अत्यधिक अभाव था, इसी कारण अपने तुर्की शत्रु के विरुद्ध वह अपने किसी भी पड़ोसी राज्य से सहायता प्राप्त नहीं कर सका था।

तराइन का प्रथम युद्ध - 1190-91 ई में पृथ्वीराज पर मोहम्मद गोरी ने प्रथम बड़ा आक्रमण किया। मिनहाजुद्दीन के अनुसार "सुल्तान ने इस्लाम की सेनाओं का संगठन कर तबर हिन्द के किले पर आक्रमण कर दिया तथा उसे जीतकर मालिक जियाउद्दीन की निगरानी में रख दिया।" यह दुर्ग पृथ्वीराज के राज्य का ही कोई दुर्ग था परन्तु इसके समीकरण के सम्बन्ध में दो मतभेद हैं। तादीखे फरिश्ता तथा कुछ अन्य मुसलमानी ग्रन्थों के आधार पर उसकी प्रथम पहचान भटिण्डा से की गई। किन्तु डॉ. दशरथ शर्मा भौगोलिक दृष्टि के आधार पर उसे रसहिन्द मानते हैं। शिहाबुद्दीन ने जियाउद्दीन को वहाँ का शासक नियुक्त करके 12000 चुने हुए घुडसवारों सहित अपनी सेना का अधिकांश भाग देकर आठ महीने तक अपने आने की प्रतीक्षा करने की आज्ञा दी। इस बार उसकी योजना गजनी से एक विशाल सेना के वापस आकर चाहमानों पर आक्रमण करने की थी, परन्तु इसी बीच उसे सूचना मिली कि पृथ्वीराज दिल्ली के राजा गोविन्दराज के साथ एक विशाल सेना के साथ तबर हिन्दाह की ओर अग्रसर हो रहा है। यह सुनकर वह घबरा गया और दिल्ली के निकट कर्नाल जिले में तराइन (तरावडी) के क्षेत्र में चाहमान सेनाओं का सामना करने को बाध्य हो गया।

पृथ्वीराज तृतीय के जयचन्द के साथ सम्बन्ध - जयचन्द तथा पृथ्वीराज तृतीय के सम्बन्ध इसी काल में जयचन्द की पुत्री संयोगिता के स्वयम्बर के कारण पृथ्वीराज और जयचन्द में विरोध हो गया था। जयचन्द कन्नौज का शासक था, जो गहड़वाल वंश का शासक था। इसके पिता विजयचन्द थे। पिता की मृत्यु के पश्चात् 1170 ई में कन्नौज का शासक बना था। स्वयंवर तो मात्र एक प्रतीक था बल्कि जयचन्द तथा पृथ्वीराज चौहान के मध्य पूर्व से दुश्मनी थी, जयचन्द ने इसका बदला चुकाने के लिए स्वयम्वर का आयोजन किया था। पृथ्वीराज को स्वयम्वर का निमन्त्रण नही दिया गया था। उसने पृथ्वीराज की प्रतिमा रक्षक के रूप मे पाण्डाल के दरवाजे पर लगा दी थी। पृथ्वीराज को यह जानकारी मिल गयी थी, वह उचित समय पर पहुँचा तथा संयोगिता का अपहरण कर दिल्ली राजदरबार मे ले गया था। इस अपमान का बदला चुकाने के लिए जयचन्द ने मुहम्मद गोरी को भारत आने का निमन्त्रण दिया था।

किन्तु पृथ्वीराज तराइन का प्रथम युद्ध जीतते हुए भी अन्तिम संघर्ष से पराजित हो गया। उसने भागती हुई मुसलमानी सेना का पीछा न कर उसे पुन एकत्र दोबारा अपने राज्य पर आक्रमण का अवसर देकर बड़ी भूल की। सम्भवतः भागती हुई सेना का पीछा कर उसे नष्ट-भ्रष्ट करना और घायल शत्रु को पकडकर उसका काम तमाम कर देना भारतीय युद्ध-संहिता के विपरीत और राजपूतों के आन के विरुद्ध समझकर उसने ऐसा नहीं किया। किन्तु वह इस तथ्य से अनभिज्ञ थे कि शत्रुपक्ष की दृष्टि में इस प्रकार की युद्ध नीति का कोई महत्व नहीं था। पृथ्वीराज ने मोहम्मद गोरी को तराइन के युद्ध-क्षेत्र में पराजित कर अपने राज्य और देश की समस्याओं का अन्त मान लिया और स्वयं भोग-विलास में लग गया। यदि पृथ्वीराज रासो का विश्वास किया जाये तो यह मालूम होगा कि उसने इसी समय सयोगिता का अपहरण कर अजगर के दुर्ग में उसकी भुजाओं का बन्दी बन गया और उसी के साथ अपना सम्पूर्ण समय व्यतीत करने लगा। वह रनिवास से भी बहुत कम बाहर आता था और राज-कर्त्तव्यों की उपेक्षा होने लगी। कुछ साक्ष्यों के आधार पर तो यहाँ तक कहा जा सकता है कि गोरी के साथ होने वाली आगामी लड़ाई के पूर्व वह नींद का इतना बड़ा शिकार हो गया कि उसकी बुद्धि ही मन्द हो गई और कोई यदि उसे आवश्यकतावश जगा भी देता तो उसके क्रोध की सीमा न रहती।

सन् 1192 का तराइन का द्वितीय युद्ध - एक ओर पृथ्वीराज की दशा यह थी और दूसरी ओर मोहम्मद गोरी अपनी पराजय को नही भूल सका था और उसका प्रतिशोध लेने के लिए पूर्व तैयारी कर रहा था। गजनी पहुँचने पर उसके लिये नींद और आराम हराम हो गया और वह शीघ्र ही एक लाख बीस हजार चुने हुए अफगान ताजिक और तुर्क अश्वारोहियों के अतिरिक्त सभी प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित होकर उसने भारत की ओर प्रस्थान किया और दूसरी बार तराइन के युद्ध क्षेत्र में आ डटा। पृथ्वीराज भी तीन लाख अश्वारोहियों, तीन हजार हाथियों के अतिरिक्त पर्याप्त संख्या में पैदल सैनिकों के साथ युद्ध क्षेत्र में पहुँच गया। इस समय उसके साथ लगभग 150 सामन्त थे। ये सभी गंगाजल की सौगन्ध लेकर विजयी होने अथवा मर मिटने के लिये कृतसंकल्प थे। किन्तु पृथ्वीराज का सबसे बड़ा प्रतिद्वन्द्वी अपने अपमान का घाव धोता रहा और युद्ध से उसी प्रकार अलग रहा जिस प्रकार सन् 1178 ई. में पृथ्वीराज गुजरात के चालुक्यों की सहायता करने से विरत रहा था। इस पर भी पृथ्वीराज भयभीत नहीं हुआ। उसने मोहम्मद गोरी को पत्र लिखा कि वह गजनी वापिस चला जावे तो चाहमान सेनाएं उसे हानि नहीं पहुँचायेंगी, किन्तु मोहम्मद गोरी उससे अधिक चालाक निकला, उसने वह प्रस्ताव अपने भाई के पास गजनी भेजने का बहाना बनाकर पृथ्वीराज को धोखे में डाल दिया। वह शिथिल पड़ गया और हिन्दू सेनाएं युद्ध विराम की स्थिति में निश्चित होकर विश्राम करने लगी। उधर गोरी ने अपने सामने वाली सेनाओं को तो नही हटाया, किन्तु पीछे वाली पंक्तियों को नये सिरे से युद्ध के लिए अधिक सुविधाजनक स्थान पर कहीं अन्यत्र हटाने लगा, उनकी सहायता से वह हिन्दू सेना पर चारों ओर से ऐसे समय टूटा, जब सूर्योदय भी नहीं हुआ था और सभी हिन्दू सैनिक अपनी नित्य क्रियाओं में ही लगे हुये थे। उस समय पृथ्वीराज तो सो ही रहा था इस प्रकार युद्ध की स्थिति में एकदम तैयार न रहने के कारण आक्रमण के कारण समस्त हिन्दू सेना तितर-बितर हो गयी। दोपहर बाद लगभग 3 बजे मोहम्मद गोरी ने अपना अन्तिम और भीषणतम आक्रमण किया। हिन्दू सेना में भगदड़ मच गयी। एक लाख सैनिक लड़ते रहे। पृथ्वीराज स्वयं भागते हुए सरस्वती नदी के तट पर पकड़ा गया और उसका सर्वप्रमुख सहायक युद्ध करता हुआ वीरगति को प्राप्त हुआ। मोहम्मद गोरी ने आगे बढ़कर अजमेर को लूटा तथा जो बचा उसे नष्ट किया और मन्दिरों को भी नष्ट किया।

कहा जाता है कि तराइन के दूसरे युद्ध में पृथ्वीराज की पराजय से गहड़वाल नरेश के हर्ष की सीमा न रही और उसने अपनी राजधानी कन्नौज में दीपावली का उत्सव आयोजित किया। यह उसकी व्यक्तिगत शत्रुता और पृथ्वीराज द्वारा अपमानित किये जाने के कारण क्रोध का एक अपवादात्मक परिचय मात्र हो सकता है। किन्तु इस सम्बन्ध में कि चाहमान राजा के पराजित हो जाने तथा वीरगति को प्राप्त होने पर तत्कालीन अन्य राजाओं के मन में किस प्रकार की भावनाएं उठीं। एक बात स्पष्ट है कि भारतीय धर्म और संस्कृति के मूर्त शत्रु गोरी के विरुद्ध संगठित होकर भारतीय नरेश ने कुछ नहीं किया और वे सभी बारी-बारी से उसकी चक्की में पिस गये। उनमें से अनेक ने अकेले ही उसे पराजित करने में सफलता प्राप्त की थी। संगठित होकर वह गोरी के विरुद्ध एक अभेद्य दीवार खड़ी कर सकते थे। यदि वे ऐसा कर सकते हैं तो सम्भवत: भारत का इतिहास कुछ और ही होता। पृथ्वीराज के साथ शिहाबुद्दीन के विरुद्ध जो भी राजा लड़े थे, वे उसके सामन्त मात्र थे, जिनका उसके लिये युद्ध करना राजनीतिक कर्त्तव्य था। उसे अपने समीपवर्ती सभी हिन्दू राज्यों के प्रति आरम्भ से ही मैत्रीपूर्ण नीति अपनाकर आवश्यक एकता का वातावरण तैयार करना चाहिए था और अपनी सीमा के पार बैठी हुई विपत्ति का पूर्व अनुमान लगा लेना चाहिये था। किन्तु उसने अपने तथा देश के लिये दुर्भाग्य से ऐसा नहीं किया। गुर्जर प्रतिहार ने इस प्रकार की चिन्ता की थी और अरब आक्रमणकारियों को कभी भी सिन्ध के आगे बढ़ने में सफलता नही मिली, किन्तु चाहमानो ने ऐसा नहीं किया और सम्पूर्ण उत्तरी भारत पर अफगान छा गये।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- ऐतिहासिक युग के इतिहास पर प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- सिन्धु घाटी सभ्यता का परिचय दीजिए व भारत में उसके बाद विकसित होने वाली सभ्यता व संस्कृति को चित्रित कीजिए।
  3. प्रश्न- भारत के प्रख्यात इतिहाकार कल्हण व आर. सी. मजूमदार का परिचय दीजिए।
  4. प्रश्न- भारतीय ज्ञान प्रणाली के स्रोत पर प्रकाश डालिए।
  5. प्रश्न- जदुनाथ सरकार, वी. डी. सावरकर, के. पी. जायसवाल का परिचय दीजिए।
  6. प्रश्न- भारत के प्रख्यात इतिहासकार मृदुला मुखर्जी के बारे में बताइए।
  7. प्रश्न- भारत संस्कृति (भाषाओं) के ज्ञान से अवगत कराइये।
  8. प्रश्न- नृत्य व रंगमंच की भारतीय संस्कृति से अवगत कराइये।
  9. प्रश्न- सिन्धु घाटी सभ्यता से मगध राज्य तक पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  10. प्रश्न- भारत के प्रख्यात इतिहासकार विपिनचन्द्र पर टिप्पणी लिखिए।
  11. प्रश्न- मध्य पाषाण समाज और शिकारी संग्रहकर्ता पर टिप्पणी कीजिए।
  12. प्रश्न- ऊपरी पुरापाषाण क्रांति क्या थी?
  13. प्रश्न- प्रसिद्ध इतिहासकार रोमिला थापर पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  14. प्रश्न- पाषाण युग की जीवनशैली किस प्रकार की थी?
  15. प्रश्न- के. पी. जायसवाल के विशिष्ट कार्यों से अवगत कराइये।
  16. प्रश्न- वी. डी. सावरकर के धार्मिक और राजनीतिक विचार से अवगत कराइये।
  17. प्रश्न- लोअर पैलियोलिथिक पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  18. प्रश्न- सिन्धु घाटी सभ्यता के विषय में आप क्या समझते हैं? 'हड़प्पा संस्कृति' के निर्माता कौन थे? बाह्य देशों के साथ उनके सम्बन्धों के विषय में आप क्या समझते हैं?
  19. प्रश्न- सिन्धु घाटी सभ्यता के सामाजिक व्यवस्था का वर्णन कीजिए।
  20. प्रश्न- सिन्धु घाटी सभ्यता के लोगों के आर्थिक जीवन के विषय में विस्तारपूर्वक बताइये।
  21. प्रश्न- सिन्धु नदी घाटी के समाज के धार्मिक व्यवस्था की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  22. प्रश्न- सिन्धु घाटी सभ्यता की राजनीतिक व्यवस्था एवं कला का विस्तार पूर्वक वर्णन कीजिए।
  23. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के नामकरण और उसके भौगोलिक विस्तार की विवेचना कीजिए।
  24. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता की नगर योजना का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  25. प्रश्न- हड़प्पा सभ्यता के नगरों के नगर-विन्यास पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  26. प्रश्न- हड़प्पा संस्कृति की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  27. प्रश्न- सिन्धु घाटी के लोगों की शारीरिक विशेषताओं का संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिए।
  28. प्रश्न- पाषाण प्रौद्योगिकी पर टिप्पणी लिखिए।
  29. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के सामाजिक संगठन पर टिप्पणी कीजिए।
  30. प्रश्न- सिंधु सभ्यता के कला और धर्म पर टिप्पणी कीजिए।
  31. प्रश्न- सिंधु सभ्यता के व्यापार का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  32. प्रश्न- सिंधु सभ्यता की लिपि पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  33. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता में शिवोपासना पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  34. प्रश्न- सैन्धव धर्म में स्वस्तिक पूजा के विषय में बताइये।
  35. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के विनाश के क्या कारण थे?
  36. प्रश्न- लोथल के 'गोदी स्थल' पर लेख लिखो।
  37. प्रश्न- मातृ देवी की उपासना पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  38. प्रश्न- 'गेरुए रंग के मृदभाण्डों की संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
  39. प्रश्न- 'मोहन जोदडो' का महान स्नानागार' पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  40. प्रश्न- ऋग्वैदिक अथवा पूर्व-वैदिक काल की सभ्यता और संस्कृति के बारे में आप क्या जानते हैं?
  41. प्रश्न- विवाह संस्कार से सम्पादित कृतियों का वर्णन कीजिए तथा महत्व की व्याख्या कीजिए।
  42. प्रश्न- वैदिक कालीन समाज पर प्रकाश डालिए।
  43. प्रश्न- उत्तर वैदिककालीन समाज में हुए परिवर्तनों की व्याख्या कीजिए।
  44. प्रश्न- वैदिक कालीन समाज की प्रमुख विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
  45. प्रश्न- वैदिक साहित्य के बारे में संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  46. प्रश्न- ब्रह्मचर्य आश्रम के कार्य व महत्व को समझाइये।
  47. प्रश्न- वानप्रस्थ आश्रम के महत्व को समझाइये।
  48. प्रश्न- सन्यास आश्रम का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  49. प्रश्न- मनुस्मृति में लिखित विवाह के प्रकार लिखिए।
  50. प्रश्न- वैदिक काल में दास प्रथा का वर्णन कीजिए।
  51. प्रश्न- पुरुषार्थ पर लघु लेख लिखिए।
  52. प्रश्न- 'संस्कार' पर प्रकाश डालिए।
  53. प्रश्न- गृहस्थ आश्रम के महत्व को समझाइये।
  54. प्रश्न- महाकाव्यकालीन स्त्रियों की दशा पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  55. प्रश्न- उत्तर वैदिककालीन स्त्रियों की दशा पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  56. प्रश्न- वैदिककाल में विवाह तथा सम्पत्ति अधिकारों की क्या स्थिति थी?
  57. प्रश्न- उत्तर वैदिककाल की राजनीतिक दशा का उल्लेख कीजिए।
  58. प्रश्न- विदथ पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  59. प्रश्न- ऋग्वेद पर टिप्पणी कीजिए।
  60. प्रश्न- आर्यों के मूल स्थान पर प्रकाश डालिए।
  61. प्रश्न- 'सभा' के विषय में आप क्या जानते हैं?
  62. प्रश्न- वैदिक यज्ञों के सम्पादन में अग्नि के महत्त्व को व्याख्यायित कीजिए।
  63. प्रश्न- उत्तरवैदिक कालीन धार्मिक विश्वासों एवं कृत्यों के विषय में आप क्या जानते हैं?
  64. प्रश्न- बिम्बिसार के समय से नन्द वंश के काल तक मगध की शक्ति के विकास का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  65. प्रश्न- नन्द कौन थे? महापद्मनन्द के जीवन तथा उपलब्धियों का उल्लेख कीजिए।
  66. प्रश्न. बिम्बिसार की राज्यनीति का वर्णन कीजिए तथा परिचय दीजिए।
  67. प्रश्न- उदयिन के जीवन पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  68. प्रश्न- नन्द साम्राज्य की विशालता का वर्णन कीजिए।
  69. प्रश्न- धननंद और कौटिल्य के सम्बन्ध का उल्लेख कीजिए।
  70. प्रश्न- धननंद के विषय में आप क्या जानते हैं?
  71. प्रश्न- मगध की भौगोलिक सीमाओं को स्पष्ट कीजिए।
  72. प्रश्न- मौर्य कौन थे? इस वंश के इतिहास जानने के स्रोतों का उल्लेख कीजिए तथा महत्व पर प्रकाश डालिए।
  73. प्रश्न- चन्द्रगुप्त मौर्य के विषय में आप क्या जानते हैं? उसकी उपलब्धियों और शासन व्यवस्था पर निबन्ध लिखिए।
  74. प्रश्न- सम्राट बिन्दुसार का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  75. प्रश्न- मौर्यकाल में सम्राटों के साम्राज्य विस्तार की सीमाओं को स्पष्ट कीजिए।
  76. प्रश्न- चन्द्रगुप्त मौर्य के बचपन का वर्णन कीजिए।
  77. प्रश्न- सुदर्शन झील पर टिप्पणी लिखिए।
  78. प्रश्न- अशोक के प्रारम्भिक जीवन पर प्रकाश डालते हुए बताइये कि वह किस प्रकार सिंहासन पर बैठा था?
  79. प्रश्न- सम्राट अशोक के साम्राज्य विस्तार पर प्रकाश डालिए।
  80. प्रश्न- सम्राट के धम्म के विशिष्ट तत्वों का निरूपण कीजिए।
  81. प्रश्न- अशोक के शासन व्यवस्था की विवेचना कीजिए।
  82. प्रश्न- 'भारतीय इतिहास में अशोक एक महान सम्राट कहलाता है। यह कथन कहाँ तक सत्य है? प्रकाश डालिए।
  83. प्रश्न- मौर्य वंश के पतन के लिए अशोक कहाँ तक उत्तरदायी था?
  84. प्रश्न- अशोक ने धर्म प्रचार के क्या उपाय किये थे? स्पष्ट कीजिए।
  85. प्रश्न- सारनाथ स्तम्भ लेख पर टिप्पणी कीजिए।
  86. प्रश्न- बृहद्रथ किस राजवंश का शासक था और इसके विषय में आप क्या जानते हैं?
  87. प्रश्न- कौटिल्य और मेगस्थनीज के विषय में आप क्या जानते हैं?
  88. प्रश्न- कौटिल्य की पुस्तक 'अर्थशास्त्र' में उल्लेखित विषयों की व्याख्या कीजिए।
  89. प्रश्न- कौटिल्य रचित 'अर्थशास्त्र' में 'कल्याणकारी राज्य' की परिकल्पना को स्पष्ट कीजिए।
  90. प्रश्न- गुप्तों की उत्पत्ति के विषय में आप क्या जानते हैं? विस्तृत विवेचन कीजिए।
  91. प्रश्न- काचगुप्त कौन थे? स्पष्ट कीजिए।
  92. प्रश्न- प्रयाग प्रशस्ति के आधार पर समुद्रगुप्त की विजयों का उल्लेख कीजिए।
  93. प्रश्न- चन्द्रगुप्त (द्वितीय) की उपलब्धियों के बारे में विस्तार से लिखिए।
  94. प्रश्न- कल्याणी के उत्तरकालीन पश्चिमी चालुक्य को समझाइए।
  95. प्रश्न- गुप्त शासन प्रणाली पर एक विस्तृत लेख लिखिए।
  96. प्रश्न- गुप्तकाल की साहित्यिक एवं कलात्मक उपलब्धियों का वर्णन कीजिए।
  97. प्रश्न- गुप्तों के पतन का विस्तार से वर्णन कीजिए।
  98. प्रश्न- गुप्तों के काल को प्राचीन भारत का 'स्वर्ण युग' क्यों कहते हैं? विवेचना कीजिए।
  99. प्रश्न- रामगुप्त की ऐतिहासिकता पर विचार व्यक्त कीजिए।
  100. प्रश्न- गुप्त सम्राट चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य के विषय में बताइए।
  101. प्रश्न- आर्यभट्ट कौन था? वर्णन कीजिए।
  102. प्रश्न- राजा के रूप में स्कन्दगुप्त के महत्व की विवेचना कीजिए।
  103. प्रश्न- कुमारगुप्त पर संक्षेप में टिप्पणी लिखिए।
  104. प्रश्न- कुमारगुप्त प्रथम की उपलब्धियों पर प्रकाश डालिए।
  105. प्रश्न- गुप्तकालीन भारत के सांस्कृतिक पुनरुत्थान पर प्रकाश डालिए।
  106. प्रश्न- कालिदास पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  107. प्रश्न- विशाखदत्त कौन था? वर्णन कीजिए।
  108. प्रश्न- स्कन्दगुप्त कौन था?
  109. प्रश्न- जूनागढ़ अभिलेख से किस राजा के विषय में जानकारी मिलती है उसके विषय में आपसूक्ष्म में बताइए।
  110. प्रश्न- गुर्जर प्रतिहारों की उत्पत्ति का आलोचनात्मक विवरण दीजिए।
  111. प्रश्न- मिहिरभोज की उपलब्धियों का मूल्यांकन कीजिए।
  112. प्रश्न- गुर्जर-प्रतिहार नरेश नागभट्ट द्वितीय के शासनकाल की घटनाओं पर प्रकाश डालिए।
  113. प्रश्न-
  114. प्रश्न- गुर्जर-प्रतिहार शासक नागभट्ट प्रथम के शासन-काल का विवरण दीजिए।
  115. प्रश्न- वत्सराज की उपलब्धियों पर प्रकाश डालिए।
  116. प्रश्न- गुर्जर-प्रतिहार वंश के इतिहास में नागभट्ट द्वितीय के स्थान का मूल्यांकन कीजिए।
  117. प्रश्न- मिहिरभोज की राजनैतिक एवं सांस्कृतिक उपलब्धियों का वर्णन कीजिए।
  118. प्रश्न- गुर्जर-प्रतिहार सत्ता का मूल्यांकन कीजिए।
  119. प्रश्न- गुर्जर प्रतिहारों का विघटन पर प्रकाश डालिये।
  120. प्रश्न- गुर्जर-प्रतिहार वंश के इतिहास जानने के साधनों का उल्लेख कीजिए।
  121. प्रश्न- महेन्द्रपाल प्रथम कौन था? उसकी उपलब्धियों पर प्रकाश डालिए। उत्तर -
  122. प्रश्न- राजशेखर और उसकी कृतियों पर एक टिप्पणी लिखिए।
  123. प्रश्न- राज्यपाल तथा त्रिलोचनपाल पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  124. प्रश्न- त्रिकोणात्मक संघर्ष में प्रतिहारों की भूमिका का उल्लेख कीजिए।
  125. प्रश्न- कन्नौज के प्रतिहारों पर एक निबन्ध लिखिए।
  126. प्रश्न- प्रतिहार वंश का महानतम शासक कौन था?
  127. प्रश्न- गुर्जर एवं पतन का विश्लेषण कीजिये।
  128. प्रश्न- कीर्तिवर्मा द्वितीय एवं बादामी के चालुक्यों के अन्त पर प्रकाश डालिए।
  129. प्रश्न- चालुक्य राज्य के अंधकार काल पर प्रकाश डालिए।
  130. प्रश्न- पूर्वी चालुक्य शासकों ने कला और संस्कृति में क्या योगदान दिया है?
  131. प्रश्न- चालुक्य कौन थे? इनकी उत्पत्ति के बारे में बताइए।
  132. प्रश्न- वेंगी के पूर्व चालुक्यों पर टिप्पणी लिखिए।
  133. प्रश्न- चालुक्यकालीन धर्म एवं कला का वर्णन कीजिए।
  134. प्रश्न- चालुक्यों की विभिन्न शाखाओं का वर्णन कीजिए।
  135. प्रश्न- चालुक्य संघर्ष के विषय में आप क्या जानते हैं?
  136. प्रश्न- कल्याणी के पश्चिमी चालुक्यों की शक्ति के प्रसार का विवरण दीजिए।
  137. प्रश्न- चालुक्यों की उपलब्धियों के महत्व का वर्णन कीजिए।
  138. प्रश्न- चालुक्यों की शासन व्यवस्था का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  139. प्रश्न- चालुक्य- पल्लव संघर्ष का विवरण दीजिए।
  140. प्रश्न- परमारों की उत्पत्ति की विवेचना कीजिए।
  141. प्रश्न- राजा भोज के शासन काल में चतुर्दिक उन्नति हुई।
  142. प्रश्न- परमार नरेश वाक्पति II मुंज के शासन काल की घटनाओं पर प्रकाश डालिए।
  143. प्रश्न- राजा भोज के शासन प्रबंध के विषय में आप क्या जानते हैं? बताइए।
  144. प्रश्न- परमार वंश के पतन पर प्रकाश डालिए तथा इस वंश का पतन क्यों हुआ?
  145. प्रश्न- परमार साहित्य और कला की विवेचना कीजिए।
  146. प्रश्न- परमार वंश का संस्थापक कौन था?
  147. प्रश्न- मुंज परमार की उपलब्धियों का आंकलन कीजिए।
  148. प्रश्न- 'धारा' पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  149. प्रश्न- सीयक द्वितीय 'हर्ष' के शासन काल की घटनाओं का उल्लेख कीजिए।
  150. प्रश्न- सिन्धुराज पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  151. प्रश्न- परमारों के पतन के कारण बताइए।
  152. प्रश्न- राजा भोज एवं चालुक्य संघर्ष का वर्णन कीजिये।
  153. प्रश्न- राजा भोज की सांस्कृतिक उपलब्धियों की विवेचना कीजिए।
  154. प्रश्न- परमार इतिहास जानने के साधनों का वर्णन कीजिए।
  155. प्रश्न- भोज परमार की उपलब्धियों का उल्लेख कीजिए।
  156. प्रश्न- परमारों की प्रशासनिक व्यवस्था पर प्रकाश डालिये।
  157. प्रश्न- विग्रहराज चतुर्थ के शासन काल की घटनाओं का उल्लेख कीजिए।
  158. प्रश्न- अर्णोराज चाहमान के जीवन एवं उपलब्धियों पर प्रकाश डालिए।
  159. प्रश्न- पृथ्वीराज चौहान की उपलब्धियों की समीक्षा कीजिए। मोहम्मद गोरी के हाथों उसकी पराजय के क्या कारण थे? उल्लेख कीजिए।
  160. प्रश्न- चाहमान कौन थे? विग्रहराज चतुर्थ के विजयों का वर्णन कीजिए।
  161. प्रश्न- चाहमान कौन थे?
  162. प्रश्न- विग्रहराज द्वितीय के शासनकाल की घटनाओं पर प्रकाश डालिए।
  163. प्रश्न- अजयराज चाहमान की उपलब्धियों पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  164. प्रश्न- पृथ्वीराज चौहान की सैनिक उपलब्धियों का वर्णन कीजिए।
  165. प्रश्न- विग्रहराज चतुर्थ की उपलब्धियों का मूल्यांकन कीजिए।
  166. प्रश्न- पृथ्वीराज और जयचन्द्र की शत्रुता पर प्रकाश डालिये।
  167. प्रश्न- ऐतिहासिक साक्ष्य के रूप में पृथ्वीराज रासो के महत्व को स्पष्ट कीजिए।
  168. प्रश्न- चाहमान वंश का प्रसिद्ध शासक आप किसे मानते हैं?
  169. प्रश्न- चाहमानों के विदेशी मूल का सिद्धान्त पर प्रकाश डालिये।
  170. प्रश्न- पृथ्वीराज तृतीय के चन्देलों के साथ सम्बन्धों की विवेचना कीजिए।
  171. प्रश्न- गोविन्द चन्द्र गहड़वाल की उपलब्धियों का मूल्यांकन कीजिए।
  172. प्रश्न- गहड़वालों की उत्पत्ति की विवेचना कीजिए।
  173. प्रश्न- जयचन्द्र पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  174. प्रश्न- अर्णोराज के राज्यकाल की प्रमुख राजनीतिक घटनाओं पर प्रकाश डालिए।
  175. प्रश्न- चाहमानों (चौहानों) के राजनीतिक इतिहास का वर्णन कीजिए।
  176. प्रश्न- ललित विग्रहराज नाटक पर नोट लिखिए।
  177. प्रश्न- चाहमान नरेश पृथ्वीराज तृतीय के तराइन युद्धों का वर्णन कीजिए।
  178. प्रश्न- चौहान वंश के इतिहास जानने के स्रोतों का वर्णन कीजिए।
  179. प्रश्न- सामंतवाद पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  180. प्रश्न- सामंतवाद के पतन के कारण बताइए।
  181. प्रश्न- प्राचीन भारत में सामंतवाद की क्या स्थिति थी?
  182. प्रश्न- मौर्य प्रशासन और सामंतवाद पर टिप्पणी लिखिए।
  183. प्रश्न-
  184. प्रश्न- वेदों की उत्पत्ति के विषय में बताइए। वेदों ने हमारे जीवन को किस प्रकार के ज्ञान दिये?
  185. प्रश्न- हिन्दू धर्म और संस्कृति पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए
  186. प्रश्न- हिन्दू वर्ग की जाति-व्यवस्था व त्योहारों के विषय में बताइए।
  187. प्रश्न- 'लिंगायत'' के बारे में बताइए।
  188. प्रश्न- हिन्दू धर्म के सुधारकों के विषय में बताइए।
  189. प्रश्न- हिन्दू धर्म में आत्मा से सम्बन्धित विचारों से अवगत कराइये।
  190. प्रश्न- हिन्दुओं के मूल विश्वासों से अवगत कराइए।
  191. प्रश्न- उपवास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  192. प्रश्न- हिन्दू धर्म में लोगों के गाय के प्रति कर्तव्य से अवगत कराइये।
  193. प्रश्न- हिन्दू धर्म में
  194. प्रश्न- मुहम्मद गोरी के भारत आक्रमण का वर्णन कीजिए।
  195. प्रश्न- मुहम्मद गोरी की भारत विजय के कारणों की सुस्पष्ट व्याख्या कीजिए।
  196. प्रश्न- राजपूतों के पतन के कारणों की विवेचना कीजिए।
  197. प्रश्न- मुस्लिम आक्रमण के समय उत्तर की राजनीतिक स्थिति का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिए।
  198. प्रश्न- महमूद गजनवी के भारतीय आक्रमणों का वर्णन कीजिए।
  199. प्रश्न- भारत पर मुहम्मद गोरी के आक्रमण के क्या कारण थे?
  200. प्रश्नृ- गोरी के आक्रमण के समय भारत की राजनीतिक दशा कैसी थी?
  201. प्रश्न- गोरी के आक्रमण के समय भारत की सामाजिक स्थिति का संक्षिप्त वर्णन करें।
  202. प्रश्न- 11-12वीं सदी में भारत की आर्थिक स्थिति पर टिप्पणी लिखें।
  203. प्रश्न- 11-12वीं सदी में भारतीय शासकों के तुर्कों से पराजय के क्या कारण थे?
  204. प्रश्न- भारत में तुर्की राज्य स्थापना के क्या परिणाम हुए?
  205. प्रश्न- मुहम्मद गोरी का चरित्र-मूल्यांकन कीजिए।
  206. प्रश्न- अरबों की असफलता के क्या कारण थे?
  207. प्रश्न- अरब आक्रमण का प्रभाव स्पष्ट कीजिए।
  208. प्रश्न- तराइन के प्रथम युद्ध पर प्रकाश डालिए।
  209. प्रश्न- भारत पर तुर्कों के आक्रमण के क्या कारण थे?
  210. प्रश्न- महमूद गजनवी का आनन्दपाल पर आक्रमण का वर्णन कीजिये।
  211. प्रश्न- महमूद गजनवी का कन्नौज पर आक्रमण पर प्रकाश डालिये।
  212. प्रश्न- महमूद गजनवी द्वारा सोमनाथ का विध्वंस पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये। [
  213. प्रश्न- महमूद गजनवी के आक्रमण के कारणों का उल्लेख कीजिए।
  214. प्रश्न- भारत पर महमूद गजनवी के आक्रमण के परिणामों पर टिप्पणी कीजिए।
  215. प्रश्न- मोहम्मद गोरी की विजयों के बारे में लिखिए।
  216. प्रश्न- भारत पर तुर्की आक्रमण के प्रभावों का संक्षिप्त उल्लेख कीजिए।

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